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गिलोय (अंग्रेज़ी:टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) की एक बहुवर्षिय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं। आयुर्वेद में इसको अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुंडलाकार चढ़ती पाई जाती है। नीम, आम के वृक्ष के आस-पास भी यह मिलती है। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं। इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ मानी जाती है। गिलोय एक ऐसा चमत्कारी पौधा है, जो सभी तरह के मर्ज की दवा साबित होता है। आयुर्वेदिक द्रष्टिकोण से रोगों को दूर करने में सबसे उत्तम औषधि के रूप में गिनी जाती है। यह मनुष्य को किसी भी प्रकार के रोगों से लड़ने कि ताकत प्रदान करती है।
(नोट : गिलोय भले ही अमृत समान
हो और इसका उपयोग औषधीय रूपों में होता है, लेकिन इसका प्रयोग कभी भी स्वतः नहीं
करना चाहिए, बल्कि योग्य वैद्य से इसकी जानकारी लेकर उनकी सलाह पर ही इसका उपयोग
करना चाहिए। क्योंकि किस बीमारी में कितनी मात्रा में किस विधि से गिलोय का प्रयोग
करना है, इसकी जानकारी कोई अनुभवी वैद्य ही दे सकता है। वह आपकी बीमारी परख कर
आपको इसके उपयोग के बारे में जानकारी देगा। यह लेख केवल गिलोय के प्रति आपकी
जागरूकता बढ़ाने के लिए है। इसे पढ़कर स्वयं वैद्य बनने के लिए नहीं है।)
गिलोय के फायदे
वैद्यराज डॉ.
सुदेश यादव दिव्य ने विभिन्न व्याधियों या शारीरिक परेशानियों में गिलोय के प्रयोग
की जानकारी यहां दी है। लेकिन उनका भी कहना है कि इनके प्रयोग से पहले एक बार अपने नजदीकी वैद्य से जरूर
परामर्श कर लें।
-गिलोय को आंखों
के रोग के लिए भी लाभप्रद माना जाता है। वैद्यराज डॉ. सुदेश यादव दिव्य के अनुसार 10 मिली गिलोय के रस में 1-1 ग्राम शहद व सेंधा नमक मिलाकर खूब अच्छी प्रकार
से खरल में पीस लें। इसे आंखों में काजल की तरह लगाएं। इससे अंधेरा छाना, चुभन और काला तथा सफेद मोतियाबिंद रोग ठीक होते हैं।
-गिलोय के तने को पानी में घिसकर गुनगुना कर लें। इसे कान में 2-2 बूंद दिन में दो बार डालने से कान का मैल (कान
की गंदगी) निकल जाती है।
-गिलोय तथा सोंठ के चूर्ण को नसवार की तरह सूंघने से हिचकी बन्द होती है। गिलोय
चूर्ण एवं सोंठ के चूर्ण की चटनी बना लें। इसमें दूध मिलाकर पिलाने से भी हिचकी आना
बंद हो जाती है।
-अश्वगंधा, गिलोय, शतावर, दशमूल, बलामूल, अडूसा, पोहकरमूल तथा अतीस को बराबर भाग लेकर इसका काढ़ा बनाएं। 20-30 मिली काढ़ा को सुबह और शाम सेवन करने से राजयक्ष्मा
मतलब टीबी की बीमारी ठीक होती है। इस दौरान दूध का सेवन करना चाहिए।
-एसिडिटी के कारण उलटी हो तो 10 मिली गिलोय रस में
4-6 ग्राम मिश्री मिला लें। इसे
सुबह और शाम पीने से उलटी बंद हजाती है। गिलोय के 125-250 मिली चटनी में 15 से 30 ग्राम शहद मिला लें।
-गिलोय के 10-20 मिली रस के साथ गुड़ का सेवन करने से कब्ज में फायदा होता है।
-हरड़, गिलोय तथा धनिया को बराबर
भाग (20 ग्राम) लेकर आधा लीटर पानी
में पका लें। जब एक चौथाई रह जाय तो खौलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़ा में गुड़ डालकर
सुबह और शाम पीने से बवासीर की बीमारी ठीक होती है।
-गिलोय के 20-30 मिली काढ़ा में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन-चार बार पिलाने से
पीलिया रोग में लाभ होता है।
-गिलोय के 10-20 पत्तों को पीसकर एक गिलास छाछ में मिलाकर तथा छानकर सुबह के
समय पीने से पीलिया ठीक होता है।
-गिलोय के तने के छोटे-छोटे टुकड़ों की माला बनाकर पहनने से पीलिया रोग में लाभ
मिलता है।
-पुनर्नवा, नीम की छाल,
पटोल के पत्ते, सोंठ, कटुकी, गिलोय, दारुहल्दी, हरड़ को 20 ग्राम लेकर 320 मिली पानी में पकाकर काढ़ा बनायें। इस काढ़ा को 20 मिली सुबह और शाम पीने से पीलिया, हर प्रकार की सूजन, पेट के रोग, बगल में दर्द,
सांस उखड़ना तथा खून की कमी में लाभ होता है।
-गिलोय रस एक लीटर, गिलोय का पेस्ट 250 ग्राम, दूध चार लीटर और घी
एक किलो लेकर धीमी आँच पर पका लें। जब घी केवल रह जाए तो इसे छानकर रख लें। इस घी की
10 ग्राम मात्रा को चौगुने गाय
के दूध में मिलाकर सुबह और शाम पीने से खून की कमी, पीलिया एवं हाथीपाँव रोग में लाभ होता है।
-18 ग्राम ताजी गिलोय, 2 ग्राम अजमोद, 2 नग छोटी पीपल एवं 2 नग नीम को लेकर सेक
लें। इन सबको मसलकर रात को 250 मिली जल के साथ मिट्टी
के बरतन में रख दें। सुबह पीस, छानकर पिला दें। 15 से 30 दिन तक सेवन करने से लीवन व पेट की समस्याएं तथा अपच की परेशानी ठीक होती है।
-गिलोय, खस, पठानी लोध्र, अंजन, लाल चन्दन,
नागरमोथा, आवँला, हरड़ लें। इसके साथ
ही परवल की पत्ती, नीम की छाल तथा पद्मकाष्ठ
लें। इन सभी द्रव्यों को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर, छानकर रख लें। इस चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर मधु के साथ मिलाकर दिन
में तीन बार सेवन करें। इससे डायबिटीज में लाभ होता है।
-गिलोय के 10-20 मिली रस में 2 चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार पीने से भी डायबिटीज में फायदा होता है।
-एक ग्राम गिलोय सत् में 3 ग्राम शहद को मिलाकर
सुबह शाम सेवन करने से डायबिटीज में लाभ मिलता है।
-10 मिली गिलोय के रस को पीने
से डायबिटीज, वात विकार के कारण
होने वाली बुखार तथा टायफायड में लाभ होता है।
-मूत्र रोग (रुक-रुक कर पेशाब होना) में गिलोय से लाभ
-गुडूची के 10-20 मिली रस में 2 ग्राम पाषाण भेद चूर्ण और 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे दिन में तीन-चार बार सेवन
करने से रुक-रुक कर पेशाब होने की बीमारी में लाभ होता है।
-गिलोय के 5-10 मिली रस अथवा 3-6 ग्राम चूर्ण या 10-20 ग्राम पेस्ट या फिर 20-30 मिली काढ़ा को रोज कुछ समय तक सेवन करने से गठिया में अत्यन्त
लाभ होता है।
-10-20 मिली गिलोय के रस
में 30 मिली सरसों का तेल मिला लें।
इसे रोज सुबह और शाम खाली पेट पीने से हाथीपांव या फाइलेरिया रोग में लाभ होता है।
-10-20 मिली गिलोय के रस
को दिन में दो-तीन बार कुछ महीनों तक नियमित पिलाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है।
-40 ग्राम गिलोय को अच्छी तरह
मसलकर, मिट्टी के बरतन में रख लें।
इसे 250 मिली पानी मिलाकर रात भर
ढककर रख लें। इसे सुबह मसल-छानकर प्रयोग करें। इसे 20 मिली की मात्रा दिन में तीन बार पीने से पुराना बुखार ठीक हो
जाता है।
-20 मिली गिलोय के रस में एक
ग्राम पिप्पली तथा एक चम्मच मधु मिला लें। इसे सुबह और शाम सेवन करने से पुराना बुखार,
कफ, तिल्ली बढ़ना, खांसी, अरुचि आदि रोग ठीक होते हैं।
-बेल, अरणी, गम्भारी, श्योनाक (सोनापाठा) तथा पाढ़ल की जड़ की छाल लें। इसके साथ ही
गिलोय, आंवला, धनिया लें। इन सभी की बराबर-बराबर लेकर इनका काढ़ा
बना लें। 20-30 मिली काढ़ा को दिन
में दो बार सेवन करने से वातज विकार के कारण होने वाला बुखार ठीक होता है।
-मुनक्का, गिलोय, गम्भारी, त्रायमाण तथा सारिवा से बने काढ़ा (20-30 मिली) में गुड़ मिला ले। इसे पीने अथवा बराबर-बराबर
भाग में गुडूची तथा शतावरी के रस (10-20 मिली) में गुड़ मिलाकर पीने से वात विकार के कारण होने वाला बुखार उतर जाता है।
-20-30 मिली गुडूची के काढ़ा में
पिप्पली चूर्ण मिला ले। इसके अलावा छोटी कटेरी, सोंठ तथा गुडूची के काढ़ा (20-30 मिली) में पिप्पली चूर्ण मिलाकर पीने से वात और कफज विकार के
कारण होने वाला बुखार, सांस के उखड़ने की
परेशानी, सूखी खांसी तथा दर्द की परेशानी
ठीक होती है।
-सुबह के समय 20-40 मिली गुडूची के चटनी
में मिश्री मिलाकर पीने से पित्त विकार के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
-गुडूची, सारिवा, लोध्र, कमल तथा नीलकमल अथवा गुडूची, आँवला तथा पर्पट को
समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनायें। इस काढ़ा में चीनी मिलाकर पीने से पित्त विकार
के कारण होने वाले बुखार में लाभ होता है।
-बराबर मात्रा में गुडूची, नीम तथा आँवला से
बने 25-50 मिली काढ़ा में मधु मिलाकर
पीने से बुखार की गभीर स्थिति में लाभ होता है।
-100 ग्राम गुडूची के
चूर्ण को कपड़े से छान लें। इसमें 16-16 ग्राम गुड़, मधु तथा गाय का घी
मिला लें। इसका लड्डू बनाकर पाचन क्षमता के अनुसार रोज खाएं। इससे पुराना बुखार,
गठिया, आंखों की बीमारी आदि रोगों में फायदा होता है। इससे यादाश्त भी बढ़ती है।
-गिलोय के रस तथा पेस्ट से घी को पकाएं। इसका सेवन करने से पुराना बुखार ठीक होता
है।
-बराबर मात्रा में गिलोय तथा बृहत् पञ्चमूल के 50 मिली काढ़ा में 1 ग्राम पिप्पली चूर्ण तथा 5-10 ग्राम मधु मिलाकर
पिएं। इसके अलावा गुडूची काढ़ा को ठंडा करके इसमें एक चौथाई मधु मिलाकर पिएं। इसके
अलावा आप 25 मिली गुडूची रस में 500 मिग्रा पिप्पली चूर्ण तथा 5-6 ग्राम मधु मिला भी पी सकते हैं। इससे पुराना बुखार,
सूखी खांसी की परेशानी ठीक होती है और भूख बढ़ती
है।
-गुडूची काढ़ा में पिप्पली चूर्ण मिलाकर सेवन करने से बुखार की गंभीर स्थिति में
लाभ होता है। बुखार के रोगी को आहार के रूप में गुडूची के पत्तों की सब्जी शाक बनाकर
खानी चाहिए।
-एसिडिटी की परेशानी ठीक करता है गिलोय
-गिलोय के 10-20 मिली रस के साथ गुड़
और मिश्री के साथ सेवन करने से एसिडिटी में लाभ होता है।
-गिलोय के 20-30 मिली काढ़ा अथवा
चटनी में 2 चम्मच शहद मिलाकर पीने से
एसिडिटी की समस्या ठीक होती है
-इसके अलावा 10-30 मिली काढ़ा में अडूसा छाल, गिलोय तथा छोटी कटोरी को बराबर भाग में लेकर आधा लीटर पानी में
पकाकर काढ़ा बनायें। ठंडा होने पर 10-30 मिली काढ़ा में मधु मिलाकर पीने से सूजन, सूखी खांसी, श्वास तेज चलना,
बुखार तथा एसिडिटी की समस्या ठीक होती है।
-कफ की बीमारी में करें गिलोय का इस्तेमाल। गिलोय को मधु के साथ सेवन
करने से कफ की परेशानी से आराम मिलता है।
-काली मिर्च को गुनगुने जल के साथ सेवन करने से सीने का दर्द ठीक होता है। ये प्रयोग
कम से कम सात दिनों तक नियमित रूप से करना चाहिए।
-किसी को डेंगू बुखार आ रहा हो तो उसके लिए मरीज को डेंगू की संशमनी वटी (गिलोय
घनवटी) दवा का सेवन कराया जाए तो बुखार में आराम मिलता है। संशमनी वटी दवा डेंगू बुखार
की आयुर्वेद में सबसे अच्छी दवा मानी जाती है।
-जिनकी आंखों की रोशनी कम हो रही हो, उन्हें गिलोय के रस को आंवले के रस के साथ देने से आंखों की रोशनी भी बढ़ती है और
आंख से संबंधित रोग भी दूर होते हैं। गिलोय एक शामक औषधि है, जिसका ठीक तरह से प्रयोग शरीर में पैदा होने वाली
वात, पित्त और कफ से होने वाली
बीमारियों से छुटकारा दिला सकता है।
-गिलोय के रस का नियमित रूप से सेवन करने से पाचन तंत्र ठीक रहता है। हमारा पाचन
तंत्र ठीक रहे, इसके लिए आधा ग्राम
गिलोय पाउडर को आंवले के चूर्ण के साथ नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। गिलोय शरीर में
खून के प्लेटलेट्स की गिनती को बढ़ाती है।
-जिन लोगों को डायबिटीज की बीमारी है, उन्हें गिलोय के रस का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। डायबिटीज के मरीजों के लिए
यह वरदान है। ऐसे लोगों को हाथ की छोटी उंगली के बराबर (एक बलिस्त) गिलोय के तने का
रस और बेल के एक पत्ते के साथ थोड़ी सी हल्दी मिलाकर एक चम्मच रस का रोजाना सेवन करना
चाहिए। इससे डायबिटीज की समस्या नियंत्रित हो जाती है।
-मोटापा से परेशान व्यक्ति को रोजाना गिलोय का सेवन करना चाहिए। इसके एक चम्मच
रस में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम लेने से मोटापा दूर हो जाता है। इसके अलावा अगर
पेट में कीड़े हो गए हों और कीड़े के कारण शरीर में खून की कमी हो रही हो तो पीड़ित व्यक्ति
को कुछ दिनों तक नियमित रूप से गिलोय का सेवन कराना चाहिए।
-गिलोय में एंटीऑक्सिडेंट गुण होते हैं, जो खतरनाक रोगों से लड़कर शरीर को सेहतमंद रखते हंै। गिलोय किडनी
और लिवर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है और खून को साफ करती है। नियमित रूप
से गिलोय का जूस पीने से रोगों से लड़ने की क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है।
-किसी व्यक्ति को लगातार सर्दी-खांसी-जुकाम की समस्या हो रही हो तो उन्हें गिलोय
के रस का सेवन कराएं। दो चम्मच गिलोय का रस हर रोज सुबह लेने से खांसी से काफी राहत
मिलती है। यह उपाय तब तक आजमाएं, जब तक खांसी पूरी
तरह ठीक न हो जाए।
- इसे दिन में तीन बार सेवन करने से उलटी की परेशानी
ठीक हो जाती है। 20-30 मिली गुडूची के काढ़ा
में मधु मिलाकर पीने से बुखार के कारण होने वाली उलटी बंद होती है।
-सोंठ, मोथा, अतीस तथा गिलोय को बराबर भाग में कर जल में खौला
कर काढ़ा बनाएं। इस काढ़ा को 20-30 मिली की मात्रा में
सुबह और शाम पीने से अपच एवं कब्ज की समस्या से राहत मिलती है।
सावधान
-गिलोय के पत्तों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके डंठल का ही प्रयोग करना चाहिए।
अधिक मात्रा में गिलोय का सेवन न करें, अन्यथा मुंह में छाले हो सकते हैं।
-गिलोय डायबिटीज (मधुमेह) कम करता है। इसलिए जिन्हें कम डायबिटीज की शिकायत हो,
वे गिलोय का सेवन न करें।
-इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
-उपरोक्त में से कोई भी औषधि लेने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य ले लें।


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